प्राचीन शास्त्रानुसार ‘योगिनी एकादशी’ समस्त प्रकार के पापों का नाश कर प्राणी को इस संसार में समस्त सुख देकर मृत्यु पश्चात भवसागर से पार उतार देती है। पुराणों के अनुसार भगवान श्रीहरि ने मानव कल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों को मिलाकर कुल 26 एकादशियों को प्रकट किया। कृष्ण और शुक्ल पक्ष में पडऩे वाली इन एकादशियों के नाम और उनके गुणों के अनुसार ही उनका नामकरण भी किया। सभी एकादशियों में नारायण समतुल्य फल देने का सामथ्र्य है। ये सभी अपने भक्तों की कामनाओं की पूर्ति कराकर उन्हें विष्णु लोक पहुंचाती हैं।
इन 26 एकादशियों में एक योगिनी एकादशी इस वर्ष 20 जून को आ रही है। इस दिन पीपल तथा भगवान विष्णु की पूजा करने से बिगड़ी हुई किस्मत भी बन जाती है। इस दिन भगवान की पूजा करने के साथ ही भक्त को व्रत रखकर भगवान विष्णु की मूर्ति को ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का उच्चारण करते हुए स्नान आदि कराकर वस्त्र, चन्दन, जनेऊ, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप नैवेध, ताम्बूल आदि समर्पित करके आरती उतारनी चाहिए। पदम् पुराण के अनुसार योगिनी एकादशी समस्त पातकों का नाश करने वाली संसार सागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए सनातन नौका के सामान है।
योगिनी एकादशी से मिलता है हजारों ब्राह्मणों को भोजन समान फल
महाभारत में बताया गया है कि योगिनी एकादशी के व्रत से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने का फल प्राप्त होता है। श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को एक कथा सुनाई थी, जिसमें राजा कुबेर के श्राप से कोढ़ी होकर हेममाली यक्ष मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने योगबल से उसके दुखी होने का कारण जान लिया और योगिनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। यक्ष ने ऋषि की बात मान कर व्रत किया और दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया। बाद में भगवान की सलाह से युधिष्ठिर सहित अन्य पांडवों ने भी इस व्रत को किया था।
वर्जित है एकादशी को चावल खाना
पौराणिक मान्यताओं में कहा गया है कि माता आद्यशक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी। अत: इनको जीव रूप मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है, ताकि सात्विक रूप से विष्णु प्रिया एकादशी का व्रत संपन्न हो सके। इसी कारण से एकादशी के दिन चावल नहीं खाए जाते हैं।
1 Comment
Mera koi guru nhi he me kese sadhna kru