1.) पहला पूजा : घी का भोग लगाएं और दान करें, बीमारी दूर होती है।
2.) दूसरा पूजा : शक्कर का भोग लगाएं और उसका दान करें, आयु लंबी होती है।
3 .)तीसरा पूजा : दूध का भोग लगाएं और इसका दान करें, दु:खों से मुक्ति मिलती है।
4.) चौथा पूजा : मालपुए का भोग लगाएं और दान करें, कष्टों से मुक्ति मिलती है।
5.) पांचवां और छठा पूजा : केले व शहद का भोग लगाएं व दान करें, परिवार में सुख-शांति रहेगी और धन प्राप्ति के योग बनते हैं।
6.) सातवां पूजा : गुड़ की चीजों का भोग लगाएं और दान भी करें, निर्धनता दूर होती है।
7.) आठवां दिन: नारियल का भोग लगाएं और दान करें, सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
8.) नौवां दिन: अनाजों का भोग लगाएं और दान करें ,सुख-शांति मिलती है।
कन्या पूजन जिसे लोंगड़ा पूजन भी कहते है अष्टमी और नवमी दोनों ही दिन किया जा सकता है । जिसको करने की विधि कुछ इस प्रकार से है
नौ कुँवारी कन्याओं को सादर पुर्वक आमंत्रित करे
घर में प्रवेश करते ही कन्याओं के पाँव धोएं और उचित आसन पर बिठाए
हाथ में मौली बांधे और माथे पर बिंदी लगाएं।
उनकी थाली में हलवा-पूरी और चने परोसे।
कन्या पूजन के लिए पूजा की थाली जिसमें दो पूरी और हलवा-चने रख ले और बीच में आटे से बने एक दीपक को शुद्ध घी से जलाएं।
कन्या पूजन के बाद सभी कन्याओं को अपनी थाली में से यही प्रसाद खाने को दें।
अब कन्याओं को उचित उपहार तथा कुछ राशि भी भेंट में देऔर चरण छुएं और उनके प्रस्थान के बाद स्वयं प्रसाद खाले।
कन्या पूजन के पश्चात एक पुष्प एवं चावल के कुछ दाने हथेली में लें और संकल्प लें।
कलश में स्थापित नारियल और चढ़ावे के तौर पर सभी फल, मिष्ठान्न आदि को स्वयं भी ग्रहण करें और परिजनों को भी दें।
घट के पवित्र जल का पूरे घर में छिडकाव करें और फिर सम्पूर्ण परिवार इसे प्रसाद स्वरुप ग्रहण करें।
घट में रखें सिक्कों को अपने गुल्लक में रख सकते हैं, बरकत होती है।
माता की चौकी से सिंहासन को पुनः अपने घर के मंदिर में उनके स्थान पर ही रख दें।
श्रृंगार सामग्री में से साड़ी और जेवरात आदि को घर की महिला सदस्याएं प्रयोग कर सकती हैं।
श्री गणेश की प्रतिमा को भी पुनः घर के मंदिर में उनके स्थान पर रख दे।
चढ़ावे के तौर पर सभी फल, मिष्ठान्न आदि को भी परिवार में बांटे।
चौकी और घट के ढक्कन पर रखें चावल एकत्रित कर पक्षियों को दें।
माँ दुर्गे की प्रतिमा अथवा तस्वीर, घट में बोयें गए जौ एवं पूजा सामग्री, सब को प्रणाम करें और समुन्द्, नदी या सरोवर में विसर्जित कर दें।
विसर्जन के पश्चात एक नारियल, दक्षिणा और चौकी के कपडें को किसी ब्राह्मण को दान करें।