नवरात्रि के दूसरे दिन नवदुर्गाओं में द्वितीय माँ ब्रह्मचारिणी का आव्हान तथा पूजा की जाती है। इस दिन योगीजन अपने मन को स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित कर माँ भगवती की आराधना करते हैं तथा उनसे मनवांछित वरदान प्राप्त करते हैं।
तपस्वी स्वभाव की होने के कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ गया। इन्होंने दाएं हाथ में जप माला तथा बाएं हाथ में कमंडल धारण किए हुए है। अपने इस रूप में आद्यशक्ति भक्तों तथा सिद्धों को विजय तथा सर्वत्र सिद्धी का वरदान देती है और उनके सभी कष्टों का सहज ही निराकरण कर देती है। इनकी उपासना से भक्त में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार तथा संयम की वृद्धि होती है। जीवन में आने वाले सभी संघर्षों में वह सहज ही विजय प्राप्त कर लेता है।
सुबह स्नान-ध्यान आदि से निवृत्त होकर गणेशजी, भगवान शिव, अपने ईष्टदेव, पितृदेव तथा गुरु की वंदना करें। उसके पश्चात मां ब्रह्मचारिणी की पूजा कर उनके निम्नलिखित मंत्र का 108 बार जप करें। अंत में उन्हें भोग समर्पित कर स्वयं भी ग्रहण करें।
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
इनकी पूजा से भक्तजन इस लोक में समस्त प्रकार के सुख भोगकर मृत्युपरांत मोक्ष को प्राप्त करते हैं। वो अपने तपोबल से दुनिया में हर चीज प्राप्त कर सकते हैं।