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हिन्दू धर्म की त्रिमूर्ति – ब्रह्मा, विष्णु, महेश को सारा संसार जानता है। एक ओर ब्रह्माजी जिन्हें इस सृष्टि का रचनाकार मानते हैं तो दूसरी ओर विष्णुजी संसार को पालने वाले हैं। लेकिन महेश यानी कि भगवान शिव को विनाशकारी माना जाता है क्योंकि पृथ्वी पर पाप बढ़ जाने पर वे अपना रौद्र रूप दिखाते हैं।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि भगवान विष्णु एवं भगवान शंकर के भारत ही क्या… दुनिया भर में कई प्राचीन एवं माननीय मंदिर हैं। वे मंदिर या तो स्वयं उनके नाम से हैं या फिर उनसे जुड़े किसी अवतार के लिए समर्पित हैं, जैसे कि श्रीकृष्ण मंदिर, श्रीराम मंदिर, भैरव मंदिर आदि।
लेकिन ब्रह्माजी के मंदिर आपको पूरे विश्व में केवल तीन ही मिलेंगे। ऐसा क्यों? ब्रह्माजी जिन्होंने इस दुनिया को आकार दिया, ये वे महान देव हैं जिनके कारण इस सृष्टि को एक रूप मिला।
ब्रह्माजी ने ही हमें चार वेदों का ज्ञान दिया। हिन्दू धर्म के अनुसार उनकी शारीरिक संरचना भी बेहद अलग है। चार चेहरे और चार हाथ एवं चारो हाथों में एक-एक वेद लिए ब्रह्माजी अपने भक्तों का उद्धार करते हैं।
लेकिन इसी देव की कोई पूजा क्यों नहीं करता? क्या आप जानते हैं कि धरती लोक पर ब्रह्माजी के मंदिर तो हैं किन्तु वहां पर भी ब्रह्माजी की पूजा करना वर्जित माना गया है। परन्तु ऐसा क्यों?
इस प्रश्न का उत्तर एक पौराणिक कथा में दिया गया है। कहते हैं एक बार ब्रह्माजी के मन में धरती की भलाई के लिए यज्ञ करने का ख्याल आया। यज्ञ के लिए जगह की तलाश करनी थी।
तत्पश्चात स्थान का चुनाव करने के लिए उन्होंने अपनी बांह से निकले हुए एक कमल को धरती लोक की ओर भेज दिया। कहते हैं जिस स्थान पर वह कमल गिरा वहां ही ब्रह्माजी का एक मंदिर बनाया गया है। यह स्थान है राजस्थान का पुष्कर शहर, जहां उस पुष्प का एक अंश गिरने से तालाब का निर्माण भी हुआ था।
आज के युग में इस मंदिर को ‘जगत पिता ब्रह्मा’ मंदिर के नाम से जाना जाता है। जहां श्रद्धालुओं की लंबी कतारें देखी जा सकती हैं। लेकिन फिर भी कोई ब्रह्माजी की पूजा नहीं करता। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर इस मंदिर के आसपास बड़े स्तर पर मेला लगता है।
कथा के आगे के चरण में ऐसा कहा गया है कि ब्रह्माजी द्वारा तीन बूंदें धरती लोक पर फेंकी गई थी जिसमें से एक पुष्कर स्थान पर गिरी। अब स्थान का चुनाव करने के बाद ब्रह्माजी यज्ञ के लिए ठीक उसी स्थान पहुंचे जहां पुष्प गिरा था। लेकिन उनकी पत्नी सावित्री वक्त पर नहीं पहुंच पाईं।
ब्रह्माजी ने ध्यान दिया कि यज्ञ का समय तो निकल रहा है, यदि सही समय पर आरंभ नहीं किया तो इसका असर अच्छा कैसे होगा। परन्तु उन्हें यज्ञ के लिए एक स्त्री की आवश्यकता थी, इसलिए उन्होंने एक स्थानीय ग्वाल बाला से शादी कर ली और यज्ञ में बैठ गए।
अब यज्ञ आरंभ हो चुका था, किन्तु थोड़ी ही देर बाद सावित्री वहां पहुंचीं और यज्ञ में अपनी जगह पर किसी और औरत को देखकर वे क्रोधित हो गईं। गुस्से में उन्होंने ब्रह्माजी को शाप दिया और कहा कि जाओ इस पृथ्वी लोक में तुम्हारी कहीं पूजा नहीं होगी। यहां का जन-जीवन तुम्हें कभी याद नहीं करेगा।
सावित्री के इस रूप को देखकर सभी देवता लोग डर गए। उन्होंने उनसे विनती की कि कृपया अपना शाप वापस ले लीजिए। लेकिन क्रोध से पूरित सावित्री ने उनकी बात नहीं मानी। जब कुछ समय के पश्चात उनका गुस्सा ठंडा हुआ तो उन्होंने कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में आपकी पूजा होगी। कोई भी दूसरा आपका मंदिर बनाएगा तो उसका विनाश हो जाएगा।
पद्म पुराण के अनुसार ब्रह्माजी पुष्कर के इस स्थान पर दस हजार सालों तक रहे थे। इन सालों में उन्होंने पूरी सृष्टि की रचना की। जब पूरी रचना हो गई तो सृष्टि के विकास के लिए उन्होंने पांच दिनों तक यज्ञ किया था।
कथा के अनुसार उसी यज्ञ के दौरान सावित्री पहुंच गई थीं जिनके शाप के बाद आज भी उस तालाब की तो पूजा होती है लेकिन ब्रह्माजी की पूजा नहीं होती। आज भी श्रद्धालु केवल दूर से ही उनकी प्रार्थना कर लेते हैं, परंतु उनकी वंदना करने की हिमाकत नहीं करते। ब्रह्माजी के साथ पुष्कर के इस शहर में मां सावित्री की भी काफी मान्यता है।
कहते हैं कि क्रोध शांत होने के बाद सावित्री पुष्कर के पास मौजूद पहाड़ियों पर जाकर तपस्या में लीन हो गईं और फिर वहीं की होकर रह गईं। मान्यतानुसार आज भी देवी यहीं रहकर अपने भक्तों का कल्याण करती हैं।