प्रत्येक हिन्दू वंश और कुलों में कुल देवता अथवा कुल देवी की पूजा की परंपरा रही है। इस परंपरा को हमारे पूर्वजों और ऋषियों ने शुरू किया था। उद्देश्य था एक ऐसे सुरक्षा कवच का निर्माण जो हमारी सुरक्षा भी करे और हमारी उन्नति में भी सहायक हो। यह हर कुल और वंश के लिए विशिष्ट प्रकार की उर्जाओं की आराधना है ,जिसमे हर वंश के साथ अलग विशिष्टता और परंपरा जुडी होती है। कुछ वंश में कुल देवी होती हैं तो कुछ में कुल देवता |आज के समय में अधिकतर हिन्दू परिवारों में लोग कुल देवी और कुल देवता को भूल चुके हैं जिसके कारण उनका सुरक्षा चक्र हट चूका है और उन तक विभिन्न बाधाएं बिना किसी रोक टोक के पहुच रही हैं। परिणाम स्वरुप बहुत से परिवार परेशान हैं। इनमे स्थान परिवर्तन करने वाले अधिक हैं जैसे जो लोग आजादी के बाद पाकिस्तान से आये उनको पता नहीं हैं, जो विदेशों में बस गए उनको पता नहीं है ,जिन्होंने किसी कारण धर्म अथवा सम्प्रदाय बदल दिया उन्हें पता नहीं है। हमने तो बहुत से सिक्ख और जैन में यह समस्या पाई है जिनके पूर्वज हिन्दू हुआ करते थे और कुल देवता की पूजा होती रही थी उनके यहाँ पहले,पर बाद में बंद हो गयी। ऐसे कुछ परिवार आज विभिन्न बाधाओं से परेशान हैं ,पर आज की पीढ़ी को कुल देवता/देवी का पता ही नहीं है। वह अक्सर हमसे पूछते रहते हैं की आखिर वे अब करें तो क्या करें।
ऐसे लोगों के लिए हम एक पूजा-साधना प्रस्तुत कर रहे हैं। जिसके माध्यम से आप अपनी कुलदेवी की कमी को पूरा कर सकते हैं और एक सुरक्षा चक्र का निर्माण आपके परिवार के आसपास हो जाएगा। घर मे क्लेश चल रही हो, कोई चिंता हो, या बीमारी हो, धन कि कमी, धन का सही तरह से इस्तेमाल न हो, या देवी/देवतओं कि कोई नाराजी हो तो इन सभी समस्याओ के लिये कुलदेवी/कुलदेवता साधना सर्वश्रेष्ट साधना है। चूंकि अधिकतर कुलदेवता/कुलदेवी शिव कुल से सम्बंधित होते हैं ,अतः इस पूजा साधना में इसी प्रकार की ऊर्जा को दृष्टिगत रखते हुए साधना पद्धती अपनाई गयी है।
४ पानी वाले नारियल, लाल वस्त्र, १० सुपारिया, ८ या १६ शृंगार कि वस्तुये, पान के १० पत्ते, घी का दीपक, कुंकुम, हल्दी, सिंदूर, मौली, पांच प्रकार कि मिठाई, पूरी, हलवा, खीर, भिगोया चना, बताशा, कपूर, जनेऊ, पंचमेवा
सर्वप्रथम एक लकड़ी के बाजोट या चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। उस पर चार जगह रोली और हल्दी के मिश्रण से अष्टदल कमल बनाएं। अब उत्तर की ओर किनारे के अष्टदल पर सफ़ेद अक्षत बिछाएं उसके बाद दक्षिण की ओर क्रमशः पीला, सिन्दूरी और लाल रंग से रंग हुआ चावल बिछाएं। चार नारियल में मौली लपेटें। एक नारियल को एक तरफ किनारे सफ़ेद चावल के अष्टदल पर स्थापित करें। अब तीन नारियल में से एक नारियल को पूर्ण सिंदूर से रंग दे दूसरे को हल्दी और तीसरे नारियल को कुंकुम से,फिर ३ नारियल को मौली बांधे। इस तीन नारियल को पहले वाले नारियल के बायीं और क्रमशः अष्टदल पर स्थापित करें। प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने एक पान का पत्ता और अन्य तीन नारियल के सामने तीन तीन पान के पत्ते रखें, इस प्रकार कुल १० पान के पत्ते रखे जायेंगे। अब सभी पत्तों पर एक एक सिक्का रखें ,फिर सिक्कों पर एक एक सुपारियाँ रखें। प्रथम नारियल के सामने के एक पत्ते पर की सुपारी पर मौली लपेट कर रखें इस प्रकार की सुपारी दिखती रहे ,यह आपके कुल देवता होंगे ऐसी भावना रखें। अन्य तीन नारियल और उनके सामने के ९ पत्तों पर आपकी कुल देवी की स्थापना है। इनके सामने की सुपारियों को पूरी तरह मौली से लपेट दें। अब इनके सामने एक दीपक स्थापित कर दीजिये।
अब गुरुपूजन और गणपति पूजन संपन्न कीजिये। अब सभी नारियल और सुपारियों की चावल, कुंकुम, हल्दी ,सिंदूर, जल, पुष्प, धुप और दीप से पूजा कीजिये। जहा सिन्दूर वाला नारियल है वहां सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नहीं। जहाँ कुमकुम से रंग नारियल है वहां सिर्फ कुमकुम चढ़े सिन्दूर नहीं। बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर न चढ़ाएं, हल्दी – रोली चढ़ा सकते हैं, यहाँ जनेऊ चढ़ाएं, जबकि अन्य जगह जनेऊ न चढ़ाए। इस प्रकार से पूजा करनी है। अब पांच प्रकार की मिठाई इनके सामने अर्पित करें। घर में बनी पूरी – हलवा – खीर इन्हें अर्पित करें। चना, बताशा केवल रंगे नारियल के सामने अर्थात देवी को चढ़ाएं। आरती करें। साधना समाप्ति के बाद प्रसाद परिवार मे ही बाटना है। श्रृंगार पूजा मे कुलदेवी कि उपस्थिति कि भावना करते हुये श्रृंगार सामग्री तीन रंगे हुए नारियल के सामने चढा दे और माँ को स्वीकार करने की विनती कीजिये।
इसके बाद हाथ जोड़कर इनसे अपने परिवार से हुई भूलों आदि के लिए क्षमा मांगें और प्राथना करें की हे प्रभु, हे देवी, हे मेरे कुलदेवता या कुल देवी आप जो भी हों हम आपको भूल चुके हैं, किन्तु हम पुनः आपको आमंत्रित कर रहे हैं और पूजा दे रहें हैं आप इसे स्वीकार करें। हमारे कुल – परिवार की रक्षा करें। हम स्थान ,समय ,पद्धति आदि भूल चुके हैं, अतः जितना समझ आता है उस अनुसार आपको पूजा प्रदान कर रहे हैं, इसे स्वीकार कर हमारे कुल पर कृपा करें।
यह पूजा नवरात्र की सप्तमी – अष्टमी और नवमी तीन तिथियों में करें। इन तीन दिनों तक रोज इन्हें पूजा दें, जबकि स्थापना एक ही दिन होगी। प्रतिदिन आरती करें, प्रसाद घर में ही वितरित करें, बाहरी को न दें। सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता/कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता और उन्हें दीपक देखने तक की मनाही होती है ,किन्तु इस पद्धति में जबकि पूजा तीन दिन चलेगी कन्याएं शामिल हो सकती हैं, अथवा इस हेतु अपने कुलगुरु अथवा किसी विद्वान् से सलाह लेना बेहतर होगा |कन्या अपने ससुराल जाकर वहां की रीती का पालन करे। इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं, किन्तु साथ में तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें। वैसे यह आवश्यक नहीं है ,क्योकि सभी लोग पढ़े लिखे हों और सही ढंग से मंत्र जप कर सकें यह जरुरी नहीं साधना समाप्ति के बाद सपरिवार आरती करे। इसके बाद क्षमा प्राथना करें। तत्पश्चात कुलदेवता/कुलदेवी से प्राथना करें की आप हमारे कुल की रक्षा करें हम अगले वर्ष पुनः आपको पूजा देंगे, हमारी और परिवार की गलतियों को क्षमा करें हम आपके बच्चे हैं। तीन दिन की साधना/पूजा पूर्ण होने पर प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने के सिक्के सुपारी को जनेऊ समेत किसी डिब्बी में सुरक्षित रख ले |तीन रंगे नारियल के सामने की नौ सुपारियों में से बीच वाली एक सुपारी और सिक्के को अलग डिब्बी में सुरक्षित करें, जिस पर लिख लें कुलदेवी। अगले साल यही रखे जायेंगे कुलदेवी/कुलदेवता के स्थान पर। अन्य वस्तुओं में से सिक्के और पैसे रुपये किसी सात्विक ब्राह्मण को दान कर दें। प्रसाद घर वालों में बाँट दें तथा अन्य सामग्रियां बहते जल अथवा जलाशय में प्रवाहित कर दें।
यदि पूजा करने में या समझने में कोई दिक्कत हो तो किसी योग्य कर्मकांडी की मदद लें। एक बार अच्छे से समझ कर पूजा करें और इसे हर साल जारी रखें। योग्य का मार्गदर्शन आपकी सफलता में वृद्धि करेगा। यह पूजा पद्धति हमारे द्वारा विभिन्न पद्धतियों का अध्ययन कर मध्य मार्ग के रूप में चुना गया है और सामान्यजन के लाभार्थ प्रस्तुत है। सबके लिए उपयुक्त हो आवश्यक नहीं, हमारा उद्देश्य केवल ऐसे परिवारों को एक सुरक्षा कवच और कुलदेवी/कुलदेवता की एक ब पूजा कुलदेवी/कुलदेवता कृपा प्राप्ति साधना।