नाथ पंथः एक नजर में
नाथ साहित्य में ‘नाथ’ शब्द का अर्थ है – ‘मुक्ति देने वाला’। नाथ पंथ में साधक हठयोग के अभ्यास द्वारा मानव-मन को सांसारिक आकर्षणों और भोग-विलास से मुक्त करने का प्रयास करता है।
नाथ सम्प्रदाय की परंपरा की शुरुआत गुरु गोरखनाथ से मानी जाती है। वास्तव में नाथ सम्प्रदाय से जुड़ी कई बातों का सम्बन्ध महाभारत काल से भी पाया गया है। इसी आधार पर कहा जाता है कि भारतवर्ष में काफी प्राचीन समय से ही नाथ परंपरा रही है। हालांकि वह विभिन्न मतों तथा पंथों में बंटी हुई थी।
गुरु गोरखनाथ ने ही पहली बार इन सभी परंपराओं को एक सूत्र में बांधकर नाथ परंपरा की नींव रखीं। परंपरागत वैदिक सामाजिक नियमों के विपरीत नाथ पंथ में सभी के लिए प्रवेश खुला था। तंत्र जगत की ही भांति नाथ परंपरा में भी वाममार्गी और दक्षिणमार्गी दोनों ही मत थे। नाथ परंपरा के साथ साबर मंत्रों की भी शुरुआत हुई। गुरु गोरखनाथ और उनके शिष्यों ने आम जनता के कल्याण हेतु आमजन की ही भाषा में साबर मंत्रों की रचना की। ये आज भी सर्वसाधारण में प्रचलित है।
नाथ परंपरा पर कई पुस्तकें भी लिखी जा चुकी है। इनमें प्रसिद्ध लेखक हजारीप्रसाद द्विवेदी की पुस्तक “नाथ सम्प्रदाय” भी शामिल हैं। परंपरागत रूप से नाथ सम्प्रदाय में नवनाथ (नौ नाथों) को सर्वोच्च स्थान देकर उनके आदेशानुसार आराधना की जाती है।
ये नवनाथ गोरक्षनाथ, ज्वालेन्द्रनाथ, कारिणनाथ, गहिनीनाथ, चर्पटनाथ, रेवणनाथ, नागनाथ, भर्तृनाथ और गोपीचन्द्रनाथ। गोरक्षनाथ ही गोरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध है।
वाममार्गी सिद्धों के कारण रखी गई थी नाथ परंपरा की नींव
सिद्धों की वाममार्गी भोगप्रधान योग–साधना पद्धति की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप ही आदिकाल में नाथ परंपरा की नींव रखी गई थी। वस्तुत इस परंपरा में साधक हठयोग की साधना करते हैं। यद्यपि पंथ की नींव मछेन्द्रनाथ ने रखी थी परन्तु इसका प्रवर्तक गोरखनाथ को ही माना जाता है। इसके पीछे भी मछेन्द्रनाथ तथा गोरखनाथ की एक कहानी है।
गोरखनाथ से पूर्व भारत कई प्रकार के संक्रमणों से जूझ रहा था। इसमें मुस्लिम आक्रांताओं के बढ़ते हमले तथा धर्म के विनाश के साथ-साथ कर्मकांड भी बढ़ रहे थे। इसी समय मछेन्द्रनाथ और गोरखनाथ का प्रादुर्भाव हुआ। इन दोनों ने उत्तरी भारत की विभिन्न जातियों, पंथों और ब्राह्मणवाद से जूझ रही जनता को एक नई राह दिखाई। इस समय नाथ पंथ ने कर्मकांडों को दूर कर हठयोग की साधना पद्धति का विकास किया और उसी को अपने पंथ के लिए चुना।
“चंद्री का लड़बड़ा जिम्या का फूहडा,
गोरख कहे ये परतषि चहड़ा।”
नाथ पंथियों की प्रसिद्ध पुस्तक ‘सिद्ध–सिद्धांत पद्धति’ में ‘ह’ का अर्थ ‘सूर्य’ तथा ‘क’ का अर्थ ‘चंद्र’ बताया गया है। वे मानते हैं कि इनके योग से ही ‘हठयोग’ बनता है। इस प्रकार गोरखनाथ षट्चक्रों वाले योगमार्ग की साधना-पद्धति का आरंभ करते हैं जिसके अनुसार हठयोगी साधना द्वारा शरीर और मन को शुद्ध करके शून्य में समाधि लगाता है और वहीं ब्रह्म का साक्षात्कार होता है।
नाथ पंथ में मुख्यतया तीन बातों पर जोर दिया जाता है – (1) योगमार्ग, (2) गुरु महिमा, तथा (3) पिण्ड ब्रह्माण्डवाद। नाथ पंथ के योगमार्ग में हठयोग की प्रमुखता होने के कारण इसे गुरु की अधीनता में ही किया जाता है।