श्राद्ध पक्ष के दिनों में किए गए तर्पण और पुण्य कर्मों से पितर देवता तृप्त होते हैं और उनकी कृपा से हमारे घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। श्राद्ध पक्ष में पितर देवताओं के लिए विशेष पूजन किया जाता है। खीर-पुड़ी बनाई जाती है, ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है और कंडे (उपले) जलाकर पितरों के लिए धूप अर्पित किया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध पक्ष में पितरों की तृप्ति के लिए विशेष पूजन किया जाना चाहिए। यदि पितृ देवता प्रसन्न नहीं होंगे तो महालक्ष्मी सहित अन्य देवी-देवताओं की कृपा भी प्राप्त नहीं हो सकती है। पितरों की कृपा के बिना कड़ी मेहनत के बाद भी उचित प्रतिफल प्राप्त नहीं हो पाता है और कर्मों में बाधाएं बढ़ जाती हैं। पितरों को तृप्त करने पर सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं और सभी बिगड़े कार्य बन जाते हैं।
श्राद्ध पक्ष में अमावस्या, अपने पितरों की तिथि पर दोपहर बारह बजे यह उपाय करें। उपाय के अनुसार सबसे पहले मुख्य दरवाजे के बाहर साफ-सफाई करें। पूजन की थाली सजाएं। थाली में पूजन सामग्री के साथ ही गुड़ और घी भी विशेष रूप से रखें।
इसके बाद दरवाजे के दोनों ओर एक-एक बड़ा दीपक रखें। उसमें गाय के गोबर से बने कंडें जलाएं, दोनों दीपों का पूजन करें। पूजन के बाद पितर देवताओं को याद करते हुए दोनों दीपों में सुलगते हुए कंडों पर गुड़-घी एक साथ मिलाकर पांच बार डाल दें। इससे पितृ तृप्त होते हैं। ध्यान रखें धूप देने से पहले कंडों से धुआं निकलना बंद हो जाना चाहिए। इस उपाय से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। इस दौरान पितृ देवताओं के मंत्रों का जप भी किया जा सकता है।
श्राद्ध पक्ष की अमावस्या पर ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर पवित्र हो जाएं। जो व्यक्ति रोगी है, उसके कपड़े से थोड़ा सा धागा निकालकर रूई के साथ उसकी बत्ती बनाएं। एक मिट्टी का दीपक लें और उसमें घी भरें, रूई और धागे की बत्ती भी लगाएं।
यह दीपक हनुमानजी के मंदिर में जलाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें। रोगी को ठीक करने की प्रार्थना हनुमानजी से करें। इस उपाय से रोगी जल्दी ही ठीक हो सकता है। यह उपाय मंगलवार और शनिवार को भी नियमित रूप से किया जाना चाहिए।