किसी शुभ मुहूर्त में स्नान ध्यान आदि से शुद्ध होकर आसन शुद्धि कर लेनी चाहिए। इसकी बाद स्वयं के ललात पर भस्म चंदन अथवा रोली का तिलक लगाकर शिखा बांध लें। अब पूर्वाभिमुख होकर प्राणायाम करें व गणेश पितृदेव व अन्य सभी देवजनों का प्रणाम कर मां भगवती की पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद मां का ध्यान करते हुए पुस्तक की पूजा करें। “तत्पश्चात् मूल नवार्ण “ मंत्र से पीठ आदि में आधारशक्ति की स्थापना करके उसके ऊपर पुस्तक को विराजमान करें। इसके बाद शापोद्धार करना चाहिए। इसके बाद उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है। इसका जप आदि और अन्त में बार होता है। अंत में मृतसंजीवन विद्या का जप कर दुर्गासप्तशती के पाठ आरंभ करें।
प्रथम अध्याय का पाठ करने हर प्रकार की चिन्ता व तनाव दूर होगा।
द्वितीय अध्याय का पाठ करने से मुकदमे विवाद व भूमि आदि से संबंधित मामलों में विजय मिलेगी।
तृतीय अध्याय का पाठ करने से मां भगवती की कृपा से आपके शत्रुओं का दमन होगा।
चतुर्थ अध्याय का पाठ करने से आपके आत्म-विश्वास व साहस में वृद्धि होगी।
पंचम अध्याय का पाठ करने से घर व परिवार में सुख शान्ति बनी रहती है।
षष्ठम अध्याय का पाठ करने से मन का भय आशंका व नकारात्मक विचारों में कमी आएगी।
सप्तम अध्याय का पाठ विशेष कामना की पूर्ति के लिए किया जाता है।
अष्टम अध्याय का पाठ करने से पति-पत्नी का आपसी तनाव समाप्त होता है और मनचाहे साथी की प्राप्ति भी होती है।
नवम अध्याय का पाठ करने से परदेश गया व्यक्ति या खोया हुआ व्यक्ति शीघ्र ही वापस लौट आता है।
दशम अध्याय का पाठ करने से पुत्र की प्राप्ति होती है व मान-सम्मान में वुद्धि होती है।
ग्यारहवें अध्याय का पाठ करने से व्यवसाय में प्रगति होती है।
द्वादश अध्याय का पाठ करने से घर की कलह दूर होती है और बिगड़े हुए काम बनने लगते हैं।
त्रयोदश अध्याय का पाठ करने से घर का वास्तु दोष मानसिक क्लेश परिवार की प्रगति में आ रही बाधा दूर होती है।