नवरात्रि के छठे दिन मां भगवती के कात्यायनी स्वरूप का पूजन किया जाता है। इनकी आराधना और पूजा से भक्तों के बडे से बड़े कष्ट भी सहज ही दूर हो जाते हैं और इस संसार में सुख भोगकर मृत्यु उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है। भक्त इस चक्र में अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए मां कात्यायनी की आराधना करते हैं।
महर्षि कात्यायन के घर कन्या रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम कात्यायनी पड़ा। इनका स्वरूप अत्यन्त दिव्य तथा सुवर्ण की आभा वाला है। चार भुजाधारी मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं। अपने एक हाथ में तलवार और दूसरे में अपना प्रिय पुष्प कमल लिए हुए हैं। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं।
नवरात्रि के छठे दिन सुबह स्नान-ध्यान आदि से निवृत्त होकर मां कात्यायनी की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। उन्हें पुष्प, माला, धूप, दीप आदि अर्पित कर उनके निम्न मंत्र का जप करना चाहिए। पूजा के पश्चात मां को शहद का भोग लगाना चाहिए। इनकी पूजा के साथ ही भगवान शिव की भी पूजा करनी चाहिए। इनकी पूजा का मंत्र निम्न प्रकार है-
मां कात्यायनी की पूजा से व्यक्ति सभी प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है और उसकी हर इच्छा पूरी होती है। जिन लोगों का विवाह नहीं हो रहा, कात्यायनी की पूजा से उनका विवाह भी शीघ्र ही होता है।